जब किए गए काम के लिए भी वेतन भुगतान नहीं किया जाता है तो क्या करें? लॉकडाउन का प्रभाव

जब किए गए काम के लिए भी वेतन भुगतान नहीं किया जाता है तो क्या करें? लॉकडाउन का प्रभाव

  1. "लॉकडाउन ने उत्तर-पूर्व के सैकड़ों अर्ध-कुशल और कुशल प्रवासी कर्मचारियों को बेरोजगारों  में  बदल दिया है और उन्हें कई अन्य राज्यों की तरह गुजरात  शहर ने जीवन के कठिनाइयों का सामना करने के लिए छोड़ दिया  हैं। कर्मचारी  छेत्री के नियोक्ता ने जनवरी से उसका वेतन नहीं दिया था। इम्फाल से सोफिया और  उनके सहयोगी ने अहमदाबाद रिसॉर्ट में  जहां काम किया था, उन्होंने  भी  वही अनुभव किया था, जो पूर्वोत्तर के कई अन्य प्रवासी श्रमिकोने किया " यह अंग्रेजी ख़बर है समाचार पत्र इकोनॉमिकटाइम्स.इंडियाटाइम्स.कॉम जिसका शीर्षक है , "Wages not paid, Northeast workers board train from Gujarat" इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे 
  2. "India’s heartless capitalists deserve the labour shortages they are about to be hit with"  इन कड़े शब्दों में दप्रिंट ने  इस समाचार को अपने वेबसाइट पर प्रकाशित किया है।  इसमें एक प्रभावी लेख है इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे इस लेख में  लिखा है की  जिन श्रमकों  की कमी से भारत के हृदयहीन पूंजीपति जूझने वाले हैं वह  उसीके पात्र हैं। प्रवासी श्रमकों के  बारे में  मुख्य रूप से इस बात की अनदेखी  की गयी है की  मजदूर अपने घर वापस जाने के लिए इतने उतावले इसलिए है  क्योंकि  उनके नियोक्ताओं ने उन्हें मजदूरी देना बंद कर दिया। २९ मार्च को, गृह मंत्रालय ने वेतन  भुगतान  कानूनी रूप से अनिवार्य कर दिया था, जिसे लॉकडाउन अवधि के दौरान भी भुगतान किया जाना था। फिर भी, हमारे कई बेरहम  पूंजीपतियों ने मार्च के महीने के लिए मजदूरी का भुगतान नहीं किया है, यहां तक कि उन दिनों के लिए भी नहीं जो मजदूरों ने काम किए थे। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में,एक सर्वेक्षण में पाया गया कि ६३ प्रतिशत मजदूरों को तालाबंदी से पहले उनकी  मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया था। गुजरात में, हीरा उद्योग बार-बार सरकारी आदेशों के बावजूद श्रमिकों का भुगतान नहीं कर रहा है।  

  • अब कर्मचारी / मज़दूर  क्या कर सकते हैं?
  • श्रमिक /कर्मचारियों को श्रम विभाग से शिकायत कर सकते है । मजदूरी के गैर-भुगतान या विलंबित भुगतान या कम भुगतान के बारे में  श्रम विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन में विभिन्न कानूनों  के तहत न्यूनतम मजदूरी और मुआवजे का दावा कर सकते है।
  • यदि श्रम विभाग से कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो फिर श्रमिक / कर्मचारी  ऑनलाइन शिकायत पीएम / सीएम / श्रम मंत्री / श्रम आयुक्त से कर सकते हैं। हर राज्य की जो राज्य  भाषा है उसमे वो सम्बंधित वेबसाइट पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते है। 

न्यूनतम मजदूरी से कम का भुगतान करने पर जुर्माना न्यूनतम मजदूरी और वास्तव में मिली  मजदूरी की राशि का जो फर्क आता है उसके 10 गुना राशि  हो सकती  है। मजदूरी के गैर-भुगतान या विलंबित भुगतान के लिए इन कानूनों में जैसे की  न्युनतम वेतन अधिनियम 1948मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 , ठेका श्रम (विनियमन एवं समाप्ति) अधिनियम, 1970  के तहत, शिकायत की जा सकती है।  जब कोई ठेकेदार अपने मजदूरों को मजदूरी या वेतन का भुगतान नहीं करता है, तो प्रमुख नियोजक को अपनी कंपनी / कारखाना  / प्रतिष्ठान में काम करने वाले ठेके पर रखे श्रमिकों  के  वेतन का भुगतान करना पड़ता है।

  • न्यूनतम मजदूरी के भुगतान को हमेशा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जीवन का अधिकार माना गया है।
  • इस गुजरात सरकार  की  साइट पर भेट दे यहाँ आपको  निम्नलिखित कानूनी प्रावधान मिलेंगे। ऐसे ही अन्य राज्य की भी वेबसाइट है आप जो राज्य में काम करते है वो राज्य के वेबसाइट पर  भी देख सकेंगे , सारे प्रावधान लगभग हर राज्य में एकजैसे है। )
  • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत उल्लेखित  उल्लंघनों में श्रमिकों  के संदर्भ में इन प्रावधानों की  जाँच की जाती है।
  1. यदि वैधानिक समय सीमा की समाप्ति के बाद श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान किया जा रहा है। यह नियम 21 (1) (ए) का उल्लंघन है। 
  2. यदि मजदूरी की सामान्य दर से दोगुने पर ओवरटाइम काम के लिए सटीक मजदूरी का भुगतान श्रमिकों को नहीं किया जा रहा है। यह धारा 25 (1) का उल्लंघन है।
  3. यदि श्रमिकों को उनकी मजदूरी का भुगतान उनके संबंधित श्रेणियों के लिए निर्धारित मजदूरी की न्यूनतम दर से कम दर पर किया गया था। यह धारा 12 (1) का उल्लंघन है। 
  • कृपयाअपने राज्यों में अधिनियम के तहत अपने वैधानिक भुगतान की जाँच करें।
इसी तरह, आप अन्य श्रमिक कानूनों के  उल्लंघनों में श्रमिकों  के संदर्भ में  प्रावधानों की  जाँच कर सकते  है। गुजरात के श्रमिक गुजरात सरकार की  वही वेबसाइट पर जाँच करें और अन्य राज्य के श्रमिक उनके राज्यों के वेबसाइट पर जानकारी प्राप्त कर  सकते है , आपको विभिन्न राज्यों के इन क़ानूनी प्रावधानों में ज्यादातर समानता दिखेगी । आप निम्नलिखित अधिनियम में उल्लंघनों के लिए जाँच कर सकते हैं-

बोनस अधिनियम, १९६५ 
ग्रेच्युटी अधिनियम, १९७२ 
समान पारिश्रमिक अधिनियम, १९७६ 
अनुबंध श्रम (आर एंड ए) अधिनियम, १९७० और गुजरात नियम, १९७२ 
इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स (आरई एंड सीएस) अधिनियम, १९७९  और गुजरात नियम, १९८१ 

आपको विभिन्न श्रम कानूनों के प्रावधानों के बारे में विस्तार से पता होना जरुरी नहीं है। आपको यह  पता होना जरुरी है  कि आपको  आपका नियोक्ता /ठेकेदार यदी  वेतन, बोनस, ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं करता  हैं, सामान्य दर से दोगुनी दर पर ओवरटाइम नहीं देता है,  तब आप अपना  सभी कानूनी बकाया प्राप्त कर सकते हैं यदि आप  श्रमिक  कार्यालय अधिकारी/श्रम  मंत्री /मुख्य मंत्री /प्रधान मंत्री /आपके पालक मंत्री को आवेदन करते हैं, खासकर श्रम विभाग को। इसमें थोड़ा समय लगेगा जरूर  लेकिन आपको आपके काम के लिए पारिश्रमिक और श्रम  कानूनों के अनुसार आर्थिक बकाया भी मिल सकेंगे। जहा क़ानूनी बकाया मिलने देर होगी वहा आपको आपकी बकाया रकम पर ब्याज मिलता है। 

महाराष्ट्र शासन के श्रम  विभाग की वेबसाइट "आपले सरकार" पर शिकायत निवारण प्रणाली के माध्यम से एक शिकायत निवारण मंच  है। वेबसाइट के लिए यहां क्लिक करें। सक्षम अधिकारी 21 दिनों के भीतर आपकी शिकायत का समाधान करने का प्रयास करेगा। आप समय-समय पर अपनी शिकायत किस स्तर  पर  है यह देख सकते है । इसी तरह अन्य राज्यों में भी शिकायत निवारण मंच है  आप  सिर्फ  शिकायत निवारण प्रणाली और राज्य का नाम टाइप करे और आपको आपके राज्य की  शिकायत निवारण प्रणालीकी वेबसाइट पता मिल जायेगा। 



  • सर्वोच्च न्यायालय / उच्च न्यायालय ने पहले भी  मजदूरों/कर्मचारियों की मदद कैसे की  है?
  • सर्वोच्च न्यायालय / उच्च न्यायालय ने असामान्य मामलों में स्वत: संज्ञान लिया है जहां मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों का व्यापक उल्लंघन हो रहा है और ऐसे मामलों  को दर्ज किया गया और न्याय किया गया।  अपने कई निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यूनतम मजदूरी के  भुगतान  को  कलम  21, जीवन का अधिकार माना  है। 

  • स्वास्थ्य आपातकाल एक असामान्य  परिस्थिति है, जहां आपातकाल के कारण निर्मित परिस्थितियों की वजह से  श्रमिकों के अधिकारों  का हनन हो रहा है। उद्योगपति जो दाँवधारी हैं, अदालत में गए और तालाबंदी के दौरान श्रमिकों को वेतन  भुगतान करने के लिए जो गृह मंत्रालय ने  २९  मार्च, २०२०  को आदेश दिया था  उसे चुनौती दि है। उस गृह मंत्रालय के आदेश  पर  नियोक्ताओं पर श्रमिकों को लॉकडाउन के दौरान वेतन भुगतान न  करने  पर फ़िलहाल कोई सख्त कानूनी कारवाई न की जाये ऐसे आदेश दिए गए। १२  जून, २०२० के  सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बारे में हिंदी ख़बरों के लिए यहां क्लिक करें "लॉकडाउन के दौरान पूरा वेतन नहीं देनी वाली निजी कंपनियों के खिलाफ जुलाई तक कोई कार्रवाई न की जाए: सुप्रीम कोर्ट"  दिप्रिंट की इस खबर में बताया गया है की  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उद्योगों और श्रमिकों को एक दूसरे की जरूरत है और उन्हें पारिश्रमिक के भुगतान का मुद्दा एक साथ बैठकर सुलझाना चाहिए  और राज्य सरकारों से कहा कि वे इस तरह के समाधान की प्रक्रिया की सुविधा मुहैया करायें और इस बारे में संबंधित श्रमायुक्त के यहां अपनी रिपोर्ट पेश करें.केन्द्र ने  29 मार्च के निर्देशों को सही ठहराते हुये कहा था कि अपने कर्मचारियों और श्रमिकों को पूरा भुगतान करने में असमर्थ निजी प्रतिष्ठानों को अपनी ऑडिट की गयी बैंलेंस शीट और खाते न्यायालय में पेश करने का आदेश दिया जाना चाहिए.  दिप्रिंट  की  खबर में  शीर्ष अदालत के  फैसले की और  भी महत्वपूर्ण जानकारी दी है। वर्तमान परिस्थितियों में नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच बातचीत से इन 54 दिनों के वेतन के भुगतान का समाधान खोजने की आवश्यकता पर सर्वोच्च न्यायालय ने जोर दिया है ऐसा दिप्रिंट  की खबर में दिया है  .   

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